भोले भंङारी, औघङदानी, जटाधारी, ऐसे न जाने कितने नाम है भगवान शिव के। तथा जितने विभिन्न रूपों में शिव को पूजा जाता है उतना शायद ही किसी और देवता को पूजा जाता है। शिव की महिमा भी ऐसी है कि वह अपने भक्तों से सबसे जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और बरसाते हैं अपने भक्तों पर कृपा। माना जाता है कि शिव को मात्र याद कर लेने से ही वह प्रसन्न हो जाते हैं।शिव को पाने के लिए पार्वती को भी करनी पङी थी कठोर तपस्या। शिव की अर्धांगनी बनने के लिए पार्वती ने की थी 4 हजार साल तक तपस्या। हरिद्वार के बिल्व पर्वत पर पार्वती ने तप करके शिव को पति रूप में पाने का वरदान लिया था।
हरिद्वार जिसके कण कण में है देवताओं का वास, खासकर इस नगरी पर है शिव की विशेष कृपा । यही वह नगरी है जहाँ शिव को दो बार मिली अपनी जीवन साथी, पहले राजा दक्ष की पुत्री सती बनी शिव की अर्धागंनी और सती के यज्ञ कुंङ में भस्म होने के बाद सती ने लिया था हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में जन्म। बाद में कठोर तपस्या के बाद पार्वती ने शिव को वर के रूप में प्राप्त किया था। हरिद्वार में विल्वकेश्वर ही वह जगह है जहाँ पार्वती ने की थी शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या। हरिद्वार में विल्व पर्वत की तलहटी में स्थित है बिल्वकेश्वर महादेव का मंदिर। यह सिद्धपीठ हरिद्वार के पश्चिम में हर की पौङी थोङा ही दूरी पर राजाजी राष्ट्रीय पार्क में पङता है। चारों और बेल के पेङों से घिरे हुए इस मनोरम स्थान पर आकर मन को बहुत शान्ति मिलती है। इस स्थान के बारे में मान्यता है कि यहीं पर पार्वती ने शिव को वर रूप में पाने के लिए 4 हजार साल तक कठोर तप किया था।
इस स्थान की महिमा से पुराण भरे पङे है।कहा जाता है कि जब सती ने भगवान राम की परीक्षा लेने के लिए सीता का रूप लिया तो शिव ने इसे मर्यादा का उल्लघंन मानते हुए सती का त्याग कर दिया था। बाद में सती ने राजा दक्ष के यज्ञ कुंङ में अपने शरीर को दाह कर दिया था। इसके बाद सती ने हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया । पर भगवान शिव सती के वियोग में दुखी थे और समाधि में लीन थे। हिमालय पुत्री पार्वती ने ठान लिया था कि विवाह करना है तो शिव से ही। इसके लिए उन्हें नारद जी सलाह दी कि वैसे तो शिव आपको स्वीकार नही करेंगें। यदि शिव को पाना है तो उसके लिए करनी पङेगी उन्हें कठोर तपस्या।तभी शिव को प्रसन्न किया जा सकता है। तब नारद जी ने पृथ्वी का भ्रमण कर हरिद्वार में बिल्व पर्वत के इसी स्थान को पार्वती की तपस्या के लिए सबसे उपयुक्त पाया और पार्वती से कहा कि वह यहाँ पर विल्व पत्र खाकर रहें और शिव को पाने के लिए दिन रात करें तप।
पार्वती करती रही यहाँ पर कठोर तपस्या।जब उन्हें तप करते हुए सौकङों साल हो गये तो उन्हें संदेह हुआ कि शिव शायद उनसे प्रसन्न नही होंगें। इसके बाद तो उन्होने तय किया कि या तो वे शिव को वर रूप में प्राप्त करके ही रहेंगी नही तो .यही पर त्याग देंगी अपने प्राण। यह ठान कर पार्वती ने बेलपत्र खाना छोङ कर तपस्यारत हो गई। इसके बाद शिव ने एक दिन उनकी परीक्षा लेने के लिए उन्हें विल्व ब्रह्मचारी के रूप में दर्शन दिये और खुद ही शिव की जमकर बुराई की पर पार्वती ने कहा कि चाहे शिव कैसे भी हो पर मैंने उन्हें मन में अपना पति मान लिया है। तब शिव ने उन्हें विवाह का वरदान दिया।कहा जाता है कि शिव ने पार्वती को जब दर्शन दिये तो वह वेल के पेङ से ही प्रकट हुए थे। इसी लिए इसे बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर कहा जाता है।
तब पार्वती ने यहां पर शुरू की तपस्या।पार्वती वेल पत्र खाकर ही अपनी भूख मिटाती थी, मगर यहां पर पानी की समस्या थी तो देवताओं के आग्रह पर ब्रह्मा जी ने यहाँ पर जल की एक धारा प्रकट की। पार्वती जिसका पानी पीती थी और इसी में करती थी स्नान।वह रात्रि में यहीं पर इस गुफा में करती थी विश्राम। बिल्वकेश्वर मंदिर से आगे जंगल में 50 कदम की दूरी पर है गौरी कुंङ।
मान्यता है कि बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर में यदि सच्चे मन से शिव पार्वती की आराधना की जाये तो शिव सभी मनोकामनाओं पूरी करते हैं। शिव को बेलपत्र काफी पसन्द दोते है। इसलिए यहाँ मंदिर में पूजा में शिव को पुष्प आदि के साथ बेलपत्र और धतूरा चढाते हैं और जल व दुग्ध से करते है शिव का जलाभिषेक। मान्यता है कि यहाँ शिवलिंग पर एक बेलपत्र चढाने से व्यक्ति एक करोङ साल तक स्वर्ग में वास मिलता है।
मंदिर में आकर लोगो को मिलती है शान्ति और यहाँ पर होते हैं औलोकिक छटा के दर्शन। लोगो की इस मंदिर के प्रति आगाध श्रद्धा और आस्था है और उनका मानना है कि बिल्वकेश्वर महादेव उनकी सभी मनोकामनएं करते हैं पूरी।
मंदिर में दो वक्त आरती होती है। सुबह 5 बजे और शाम साढे 6 बजे आरती होती है।